छत्तीसगढ़
पुरातत्व संग्रहालय में आदिवासी महाकवि कालिदास पण्डो की जयंती मनाई गई .
–डिग्रीलाल जगत
बालाघाट.(काकाखबरीलाल)। इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान संग्रहालय सर्किट हाउस के पास में प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी आदिवासी महाकवि कालिदास पण्डो की जयंती प्रो.एल.सी.जैन सेवा निवृत्त प्राचार्य के मुख्य अतिथि में, सुभाष गुप्ता सेवा निवृत्त आय कर अधिकारी की अध्यक्षता में, ड़ाँ.संतोष सक्सेना भूगर्भ शास्त्री, कुलदीप बिल्थरे सेवा निवृत्त डिप्टी रेंजर के विशिष्ट अतिथि में आयोजित की गई।
आचार्य डॉ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर" संग्रहाध्यक्ष, पुरातत्व संग्रहालय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आदिवासी महाकवि कालिदास पण्डो का जन्म 15 नवम्बर 350 ईसवी में सरगुजा जिले के उदयपुर तहसील से रामायण कालीन मिलगादाह गाँव में हुआ था । इस संदर्भ में चांपा (छत्तीसगढ़)के तहसीलदार, पुरातत्व वेत्ता, इतिहास विद ड़ाँ.रामविजय शर्मा ने खोज कर प्रकाश में लाया हैं। कालीदास मूलतः संस्कृत के कवि एवं नाटककार के रुप में इस महाकवि के अद्वितीय रचना मेधदुतम् के लेखन पश्चात उनकी ख्याति पूरे विश्व में महाकवि के रुप में फैल गई, क्योंकि उनका लेखन सर।मधुर, साहित्य शैली से भरपूर सारग्रंथ हैं । आगे ड़ाँ. गहरवार ने बताया 369 ईसवी में वाराणसी चले गए तथा 6 वर्षों तक संस्कृत का अध्ययन किया, वे 375 ईसवी में संस्कृत में पारंगत होकर मृगाडांड़ वापस आये। मृगाडांड़ के सरहद में स्थित रामगिरी पर्वत (रामगढ़ पर्वत) के राम गुफा में बैठकर ऋतुसहांर, मेधदुतम् तथा अभिज्ञान शाकुंतलम कुल तीन ग्रंथों की रचना की।
इसी प्रकार अतिथि ने भी आदिवासी महाकवि कालिदास पण्डो की जयंती पर अपने-अपने सुविचारों से अवगत कराया।
उक्त अवसर पर कंचन सिंह ठाकुर, हरिलाल नगपुरे, मनीष इनवाती, अखिलेश कुमार पटले, भोलाप्रसाद मिश्रा, अंकित उपाध्याय आदि उपस्थित थे।