महासुमंद

महासमुंद :घर-घर जाकर सामान बेचा, टर्नओवर लाखों में

शहरवासी नीरू जैन कम पढ़े-लिखे होने के बाद भी बिजनेस को इस कदर संभाल रहीं हैं, जैसे कोई एमबीए डिग्रीधारी हों। उनकी काबिलियत से पढ़े-लिखे बेरोजगार भी सीख लेकर स्वरोजगार की ओर आगे बढ़ रहे हैं।

आर्थिक तंगी की वजह से वह 9वीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ पाईं। वर्ष 2003 में कोलकाता से अपने पति के साथ बिलासपुर आईं। पति संजय जैन निजी संस्थान में जॉब करने लगे, पर उतने में घर-गृहस्थी चलाना मुश्किल हो रहा था। लिहाजा उन्होंने दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ पहले सिलाई-कढ़ाई सीखी। इसके साथ ही कपड़े सिलने का काम शुरू किया। इससे होने वाली आय से उन्होंने साड़ियां व महिलाओं के अन्य गारमेंट खरीद कर घर-घर बेचना शुरू किया।

बच्चे को बनाया इंजीनियर

नीरू आज युवा बेरोजगारों के लिए उदाहरण साबित हो रही हैं। बहुत से शिक्षित बेरोजगार स्वरोजगार के लिए उन्हीं से सलाह ले रहे हैं। इसमें वह बढ़-चढ़ कर मदद भी कर रही हैं।

पति व पड़ोसियों का मिला साथ

नीरू बताती हैं कि आज वह जिस मुकाम पर हैं, इसके पीछे उनके पति संजय व पड़ोसियों का भरपूर सहयोग व प्रोत्साहन था। जब वह घर-घर जाकर सामान बेचने का काम करती थीं, तो उनके बच्चों को पड़ोसी ही संभालते थे। इस सहयोग के चलते ही वह अपने जीवन में आगे बढ़ सकी हैं।

काका खबरीलाल

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