सरायपाली

सरायपाली : अंचल के नाला में मिले अरबों वर्ष पुराने समुद्री शैवाल के जीवाश्म

सरायपाली. सरायपाली क्षेत्र जैव विविधताओं से समृद्ध है। यहां प्रकृति प्रेमी, पर्वतारोही, वनस्पति शास्त्री, प्राणी शास्त्री शोध के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं। वर्ष 2007-08 में ऑस्ट्रेलिया की कम्पनी रियो टिंटो ने यहां हवाई सर्वेक्षण कर हीरे की खोज की। हालांकि सर्वेक्षण में कितनी सफलता मिली यह स्पष्ट नहीं हुआ। वहीं अब समुद्री शैवालों के जीवाश्म खोजे हैं।

राष्ट्रीय राजमार्ग-53 से जुड़ा यह पूरा क्षेत्र जिसमें सिरपुर से लेकर सरायपाली तक प्राकृतिक विविधता व रत्नगर्भा से भरा है। यहां की नदी- नालों में भी प्राचीन सभ्यता की खोज होती है। लखनऊ जीव संरचना शुरू करने वाली सबसे पुराने बहुकोशिकीय शैवाल मिले। ताजा घटनाक्रम में भारत के ही बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने जिले के सरायपाली क्षेत्र के सुरंगी नाला में लगभग 1.5 से एक अरब वर्ष पुराने समुद्री शैवालों के जीवाश्म खोजे हैं। सरायपाली में सुरंगी नदी खंड और से यह जीवाश्म बहुतायत में मिले हैं। बताया गया है कि बीते तीन साल संस्थान के विज्ञानियों ने सरायपाली क्षेत्र में शोध किया। उन्हें यहां बहुकोशिकीय शैवालों का पूरा जीवाश्म मिला। जिसका देश व विदेश के लैब से परीक्षण कराया गया। बताया गया कि इससे पहले तक मात्र 63 करोड़ वर्ष पुराने शैवाल चीन, मंगोलिया, साइबेरिया, से खोजे गए हैं। इस शोध से भारत में डेढ़ से एक अरब वर्ष पुराने बहुकोशिकीय शैवालों के होने की दिशा में नया शोध सामने आया है। अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका फोर्टियर्स इन अर्थ साइंस में प्रकाशित किया गया है। एसडीएम नम्रता जैन ने बताया कि शोध की अनुमति के लिए कुछ वर्ष पहले फाइल चली है। कुछ शोधार्थी भी इसमें रुचि लिए हैं।

कुछ अवशेष हैं बचे
इधर, सुरंगी नाला के विषय में साहित्यकार व प्रकृति प्रेमी विद्याभूषण सतपथी ने बताया कि सुरंगी नाला देवरी सलडीह के बस्ती के भीतर से निकला है, जो देवधरा में जाकर मिल जाता है। यह सुरंगीपाली को पार कर आगे बढ़ता है, इसीलिए इसका नाम सुरंगी नाला पड़ा। देवधरा से पहले इससे सेमलिया नाला मिलता है और फिर आगे बढ़कर देवधरा फिर तेल नदी से मिलता है और इससे यह महानदी में मिलता है। सतपथी ने बताया कि यहां खुशबूदार पादप (घास) मिलता है। जिससे इत्र बनाया जाता है। पहले नैला जांजगीर के कारोबारी ने मजदूर लगाकर पूरा पादप उखाड़ लिया। हालांकि, अब भी इसके कुछ अवशेष मिलते हैं।

काका खबरीलाल

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