गांव की पांचवीं पास महिलाएं कर रहीं हर महीने लाखो का बिजनेस
ग्लोबलाइजेशन के इस युग में आपने बिजनेस के कई मॉडल देखे होंगे, लेकिन हम महिलाओं के एक अनोखे समृद्धि बाजार के बारे में बता रहे हैं, जहां हर महीने लाखों का कारोबार हो रहा है।हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से लगभग 35 किमी दूर दुर्ग-बेमेतरा मार्ग पर ग्राम बसनी मोड़ की। किसी बड़े बाजार में जितने सब्जी-फल नहीं बिकते उससे ज्यादा यहां बिक्री होती है। महिलाएं सब्जी-फल बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रही हैं। रजवंतीन, बैसाखिन, फुलेश्वरी, दुरपद, सेवती, कांति, देवकी, कुंअरिया, रमला सरीखे आसपास के गांवों की निपट देहाती महिलाएंं, जिसमें कोई पांचवीं पास है, तो किसी ने स्कूल की चौखट तक नहीं देखी है, लेकिन अपने जुनून और हौसले की वजह से आज महीने में 90 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक का कारोबार कर रही हैं।
ये लोग स्टेट हाईवे के किनारे घास-फूस और पन्नियों से ढकी झुग्गियों में सब्जियों और फलों का पसरा लगाती हैं। यहां हर समय ताजी व हरी सब्जियां और तरह-तरह के फल मिल जाएंगे। आसपास के नगर, कस्बों व गांवों के नहीं, बल्कि इस रास्ते से गुजरने वाले राहगीर ही इसके खरीददार होते हैं। इनकी संख्या बमुश्किल 22 हैं, लेकिन महीने में सभी के कारोबार की कुल राशि जोड़ दें तो लगभग 30 से 35 लाख रुपए का बिजनेस ये महिलाएं अपने दम पर कर रही हैं। वे कहती हैं कि पहले खेत में काम करके गुजर-बसर करती थीं। किसानी से केवल जीवन चल रहा था, पसरा लगाना शुरू किया तो भगवान की दया से अब बरकत होने लगी है।
अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती हंू
मैं पांचवीं तक पढ़ी हंू। रोजाना लगभग 4000 रुपए की बिक्री से अच्छी आमदनी हो जाती है। मेरे दो बेटे और दो बेटियां हैं। बड़ी बेटी तीजन 11वीं कॉमर्स की छात्रा है। छोटी बेटी उमेश्वरी अभी दसवीं पढ़ रही है। मैं तो ज्यादा नहीं पढ़ सकी, लेकिन अपने बच्चों को जहां तक वे पढऩा चाहेंगे, पढ़ाऊंगी।
रजवंतीन साहू, ग्राम परोड़ा
परिवार का गुजारा हो रहा है
मैं पांचवीं पास हंूं। पहले दूसरों के खेतों में काम कर गुजारा करती थी। परिवार बढ़ता गया तो जरूरतें पूरी करने में दिक्कतें होनी लगी। सड़क किनारे सब्जियों का पसरा लगाकर बैठ गई। ताजी और गांव की सब्जियां देखकर राहगीर आकर्षित होते गए। रोज 3000 से 4000 रुपए का धंधा हो जाता है।
दुरपद निषाद, बसनी
दिक्कतें आई, लेकिन हिम्मत नहीं हारी
असाक्षर हंूं। 10 साल से यहां पसरा लगा रही हंू। यहां पर धंधा अच्छा होता है। रोज सुबह 7 से शाम 7 बजे तक बैठती हंू। इसी पसरे की बदौलत ही अब परिवार अच्छे से चल रहा है। चना ***** और 160 रुपए किलो की बोहार भाजी देख ग्राहक पसरे की ओर खींचे चले आ रहे हैं।
बैसाखिन बाई, बसनी
खेतिहर मजदूर से आज एक सफल कारोबारी
मुझे भी अक्षर ज्ञान नहीं है। जिदंगी के तजुर्बे और परिवार को खुशहाल रखने की चाह ने मुझे खेतिहर मजदूर से कारोबारी बना दिया। रोजाना लगभग 3000-4000 रुपए का फल बेच लेती हंू। 12 सदस्यीय परिवार का गुजारा बहुत अच्छे से हो जा रहा है।
सेवती, बसनी
कोराना में गुजारा मुश्किल हुआ तो लगा लिया पसरा
कोरोना में बार-बार लॉकडाउन से पति का होटल मंदा हो गया। परिवार की जरूरत पूरी करने मैंने भी यहां पसरा लगाना शुरू कर दिया। पहले खेतिहर मजदूरी करती थी। इससे परिवार का गुजर-बसर करने में आसानी हो रही हैं।
कांति साहू, करेलीबेटी की पढ़ाई का सपना ही मकसद
सब्जी और फल की दुकानों के बीच यहां मेरार छोटा सा होटल है। लकडिय़ों से धधकते चूल्हे में गर्मागर्म समोसे, भजिया और बड़ा छानती रहती हंू। बड़ी बेटी कविता बीएससी अंतिम वर्ष में है। छोटी बेटी सरिता नवमीं कक्षा में है।
फुलेश्वरी बाई निषाद, बसनी
राहगीरों को लुभाती है ताजी-हरी सब्जियां
बसनी मोड़ पर हरी व ताजी सब्जियों और मौसमी फलों से भरी टोकरियां राहगीरों को लुभाती है। यहां से गुजरने वाले सैकड़ों नौकरीपेशा लोग इनके नियमित ग्राहक हें। हर समय दस-बारह कारें खड़ी दिख जाएंगी। सब्जी खरीद रहीं शिक्षिका प्रियंका और शिवानी कहती हैं कि यहां सब्जियां अच्छी मिलती है और तौल भी सही होता है। गांव की रसायनमुक्त सब्जियां भी मिल जाती है। इन लोगों से अब इतना अपनापन और भरोसा हो गया है कि न हम लोग कोई मोल करते हैं और न ये लोग भाव बताते हैं।
और यहां देखिए डेढ़ करोड़ का मदर्स मार्केट वीरान है
भिलाई नगर निगम तीन साल से पॉवर हाउस में छत्तीसगढ़ का पहला मदर्स मार्केट बनाने का ढिंढोरा पीट रहा है। 1 करोड़ 47 लाख की लागत से निर्मित इस मदर्स मार्केट में 27 दुकानें हैं। मार्केट को बड़े शॉपिंग मॉल की तर्ज पर ड्रांइग डिजाइन कर तैयार किया गया है। भवन के भीतर टाइल्स, आकर्षक रंग रोगन, कैंटीन, पार्किंग, बाउंड्रीवॉल, डोम शेड सभी हैं, मगर ग्राहक एक भी नहीं।