छत्तीसगढ़

विश्वपर्यावरण दिवस की सार्थकता केवल शोसल मिडिया व सरकारी कागजों तक सीमित – डॉ. अरुण कुमार पाण्डेय्

काकाखबरीलाल/छत्तीसगढ़ : छत्तीसगढ़ राज्य के परिपेक्ष में संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा घोषित विश्व पर्यावरण दिवस केवल शोसल मिडिया व सरकारी कागजों तक सिमट कर रह गई है.
विकसित व स्मार्ट बनने की होड़ के चलते तेजी से वन क्षेत्र कम होते जा रहे हैं अवैध कटाई एवं अतिक्रमण के चलते जहां लगातार पेड़ पौधे नष्ट होते जा रहे हैं. शासन स्तर पर गलत जल संवर्धन नीतियों के कारण ग्रीष्म काल में वन्य क्षेत्रों में पानी के स्त्रोतों के सूखने के कारण वन्य जीव आबादी क्षेत्रों की तरफ आकर्षित होते हैं जहां या तो वन्य प्राणी पालतू जानवरों को नुकसान पहुंचाते हैं या स्वयं शिकार हो जा रहे है. इस तरह संघर्ष की परिस्तिथि उत्पन्न होने के कारण पशु पक्षियों की कई प्रजातियां लगातार विलुप्त होते जा रही हैं. वन क्षेत्रों से प्राकृतिक जीव जैसे बाघ, शेर, चिता व अन्य गायब होने लगे हैं.
यह सर्व विदित हैकि वन्य प्राणी प्राकृतिक सन्तुलन बनाये रखने में महत्वपूर्ण कड़ी निभाते हैं. इनकी कम होती संख्या पर्यावरण के लिए घातक है,
एक उदाहरण के लिए वातावरण से गिद्ध जैसे बड़े मांसाहारी पक्षी के लुप्त होने की घटना को समझा जा सकता है, वन्य क्षेत्र में किसी बड़े जानवर के मृत होने पर औसतन 20 मिनट में ही गिद्ध के दल एकत्रित होकर मृत मांस को सफाचट कर देते हैं, परंतु यह बड़ी चिंता का विषय हैकि मोबाईल तरंगों या अन्य के कारण लगभग 90 प्रतिशत गिद्ध की प्रजाति समाप्त हो चुकी है.
ठीक इसीप्रकार अन्य प्राणियों के साथ भी है विभिन्न तरह के विकिरणों, औद्योगिक प्रदुषण, पालीथीन का बेतहासा इस्तेमाल, लगातार वन क्षेत्र में कमी, गलत जल संरक्षण की निती व अन्य कई कारण हैं जो इन सबका कारण हैं.
प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिए यह आवश्यक हैकि वन क्षेत्र व वन्य प्राणियों की रक्षा हेतु कारगर कदम उठाये जाये.
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व क्षेत्र संपूर्ण राज्य में घनघोर जंगल के नाम से प्रसिद्ध हुआ करता था, जहां राहगीरों को वन्य जीव लगातार नज़र आते रहते थे पर वन क्षेत्र में अतिक्रमण, अवैध कटाई, तस्करी व प्रशासन की निष्क्रियता के चलते यह सब सिमट कर रह गया है.
विदित होकि सीतानदी उदंती वन अभ्यारण्य में राजकीय पशु वन भैंस, गौर, हिरण, सांभर, नीलगाय, लकड़बग्घा, भालू, तेंदुआ, राष्ट्रीय पशु बाघ व दुर्लभ प्रजाती का काला तेंदुआ भी पाया जाता है.
शासन स्तर पर आज राज्य निर्माण से लगातार करोड़ो खर्च करके कई योजनाये संचालित किये जा रहे हैं, बावजूद इसके लगातार वन क्षेत्र व वन्यप्राणी ख़त्म होते जा रहे हैं.
गरियाबंद जिले के मैनपुर विकासखंड में कीमती लकड़ियों, हीरा, वन्य प्राणियों की तश्करी धड़ल्ले से जारी है जिस पर शासन – प्रशासन दोनों का मूक बधिर बने रहना इनकी मिलीभगत को दर्शाता है.

काका खबरीलाल

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