हाथ नहीं, फिर भी की बोर्ड चलाती हैं उंगलियां
यूं तो दुनिया में आपने बड़े-बड़े हुनरमंद और हौसलेबाज देखे होंगे… लेकिन वे सभी शरीर से हिस्ट-पुस्ट और मजबूत होते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे जोड़े से मिलवाने जा रहे हैं जिनके हिम्मत, हौसले और मजबूत इरादों की जितनी भी तारीफ की जाए कम ही होगी। सुलेन्द्र कुमार कुर्रे दोनो हाथों से दिव्यांग हैं, लेकिन उन्होंने अपने हौसले और कड़ी मेहनत के दम पर पोस्ट ग्रेजुएशन और कम्प्यूटर मे डीसीए तक की पढाई पूरी कर ली है। सुलेन्द्र कुमार इन दिनों बलौदाबाजार के आनंद हास्पिटल में बतौर कम्प्यूटर आपरेटर काम कर रहे हैं। सुलेन्द्र के दोनो हाथ तो नहीं है लेकिन उनकी कमी को सलेंद्र ने अपने पैरों के जरिए पूरी कर ली है।
वे पैरों से ही लिखते हें। पैरों से ही कम्प्यूटर भी चलाते हैं और हास्पिटल का सारा काम निपटाते हैं। मोबाईल का भी इस्तेमाल खुद से कर लेते हैं, जरूरत पड़ने पर खुद से खाना, पानी पीना जैसे काम भी कर लेते हैं। सुलेन्द्र की शादी 2 जनवरी 2021 में दीप्ति नाम की युवती के साथ हुई है। इनकी मुलाकात एक समाजिक परिचय सम्मेलन में हुई थी। जिसके बाद दोनो ने एक दूसरे को पसंद किया और शादी हो गई। सुलेन्द्र के दोनो हाथ नहीं होने के बाद भी दीप्ति ने उन्हे अपना जीवनसाथी चुना। दीप्ति का यह फैसले भी तारीफ के काबिल है। दीप्ति स्वयं भी पोस्ट ग्रेजुएट हैं और बीएड भी की हुई है। सुलेन्द्र की पत्नी दीप्ति से जब हमने जानना चाहा कि आपने सुलेन्द्र जैसे दिव्यांग को ही अपना जीवन साथी क्यों चुना? तो उन्होने कहा कि इंसान अपनी सोच से अपंग और दिव्यांग होता है, सुलेन्द्र जी की हिम्मत और काबिलियत का पता मुझे उनसे मिलते ही पता चल गया। सुलेन्द्र से मिलने के बाद उनका सरल स्वभाव, आगे बढ़ने की ललक को देखते हुए ही दीप्ति ने जीवन साथी के रुप में चुना है। दीप्ति अपने पति सुलेन्द्र को काम पर जाने से पहले अच्छे से तैयार करती हैं, नास्ता कराती हैं उसके बाद खुद हास्पिटल तक छोड़ने भी जाती हैं। दोपहर को सुलेन्द्र के लिए खाना लेकर जाती हैं, खाना खिलाकर उनके काम में थोड़ा हाथ बटाती हैं फिर घर आकर अपनी पढ़ाई करती हैं। दोनो में गहरा प्रेम भाव एक-दूसरे के लिए दिखता है। शाम होते ही सुलेन्द्र को हास्पिटल लेने आती हैं। आनंद हास्प्टिल के संचालक चाँदनी चन्द्राकर का उनको काम पर रखने का फैसला भी तारीफ के काबिल है। आनंद हास्प्टिल की संचालक चांदनी चन्द्राकर कहती हैं-सुलेन्द्र को मैंने नौकरी पर उसकी मदद करने के लिए नहीं रखा है, बल्कि उसकी काबिलयत के दम पर उसने खुद ही नौकरी हासिल की है। सुलेन्द्र के काम में आज तक किसी भी प्रकार की गलती नहीं मिली है। हास्पिटल का पूरा स्टाफ भी सुलेन्द्र से काफी कुछ सीखते हैं। सुलेन्द्र ऐसे लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो दिव्यांग होने पर अपने आप को कमजोर महसूस करते हैं। सुलेंद्र और उनकी पत्नी दीप्ति दोनों को उम्मीद है कि कभी न कभी तो कहीं न कहीं उनकी किस्मत पलटेगी और वे दोनो शासकीय सेवा में भर्ती हो सकेंगी।