देखिए किस तरह अपना और परिवार का पेट भरने के लिए ये मासूम बच्ची मौत से खेल रही
गरीबी हटाओ, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षा का अधिकार आदि अभियान, अधिकार व प्रावधान का सड़कों पर सरेआम मजाक उड़ रहा है। सरकार लगातार इन अभियानों के जरिए बालिका शिक्षा व गरीबी दूर करने का दावा करती रही है, पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है। सरकार नई-नई योजनाओं का ऐलान करती रहती है। इसमें महिलाओं की सुरक्षा तो कभी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे शामिल होते हैं। कई संगठन महिला सुरक्षा, महिलाओं को आगे बढ़ाने और स्वावलंबी बनाने की बात करते हैं। जमीनी हकीकत आज भी कुछ और ही है। अक्सर आपको और हमको सड़कों में तो कभी मेलों में छोटी बच्चियां पतली रस्सी पर कभी एक पैर पर खड़ी तो कभी दोनों पैरों से करतब दिखाते हुए नजर आ ही जाते हैं। सरकार भले ही मासूम बच्चों को शत-प्रतिशत स्कूल भेजने और उनकी निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था कर रही हो पर विकास की दौड़ में प्रतिभाग करते आज भी ऐसे मासूम बच्चे हैं जो पढ़ना तो दूर अपने जीवन से खिलवाड़ कर दो वक्त की रोटी के लिए करतब दिखाते हैं।
देखिए किस तरह अपना और परिवार का पेट भरने के लिए ये मासूम बच्ची मौत से खेल रही हैं। जान जोखिम में डालकर करतब दिखाती इस बच्ची को देखने के बाद यही कहा जा सकता है कि सरकारी नुमाइंदों को इस तरह के जान जोखिम में डालते बच्चे दिखते नहीं। चंद रुपयों के लिए मासूमों के जीवन से खिलवाड़ हो रहा है और हम सब उस तमाशा का हिस्सा बने हुए हैं। आप और हम भी दो मिनट रुक कर इन तमाशा की फोटो खींचते हैं और 10 का नोट उस थाली में डालते हैं और फिर आगे चलते हैं। किसी न किसी मोड़ पर नए तमाशे मिलते ही रहते हैं। पर क्या हमारे कर्तव्य की इतिश्री इतने में हो गई। सरकारें मौन है जनता तमाशा बीन है तो क्या होगा इन मासूम बच्चियों का जो दो वक्त की रोटी के टुकड़ों के लिए हवा में करतब दिखाना, नन्हे हाथों एक बड़े से बांस, लोहे के रॉड को बैलेंस के लिए साधे रखना, हर पल नीचे गिरने के डर और दर्द को सहने की, जीवन के संकट की तलवार लटकती रहती है पर फिर भी अपने दर्शकों को खुश करने के लिए मुस्कुराना इनकी मजबूरी है।