सरायपाली : फसलों में बढ़ने लगा कीट प्रकोप
विगत कुछ दिनों से मौसम में अचानक परिवर्तन आने के कारण अब फसलों में कीटों का प्रकोप बढ़ गया है। किसान अपनी फसलों को कीट प्रकोप से बचाने के लिए तरह-तरह की दवाइयों का छिड़काव कर रहे हैं। इससे उनका खेती का बजट भी काफी बढ़ गया है वहीं दूसरी ओर फसलों में रासायनिक पदार्थों की मात्रा भी बढ़ रही है।
इन दिनों मौसम में अचानक परिवर्तन होने एवं तापमान शीतोष्ण होने से धान फसलों में शीथ ब्लास्ट, झुलसा रोग, रसचूसक कीट माईट, सफेद मक्खी, हरा माहो, भूरा माहो, फूदका रोग के लक्षण व प्रकोप देखे जा रहे हैं। इसके नियंत्रण उपचार के अनुभवी किसान हेक्साकोनाजोल, प्रोपिकोनाजोल, डीफेनाकोनाजोल, बाईपेंथ्रीन, क्लोरोपायरीफास, सायपरमेंथ्रीन, थाइमेथाक्सम, बीपीएमसी, पायमेट्रोजीन, एजोक्स्ट्रोबिन जैसे खतरनाक रासायनिक महंगी दवाओं का छिड़काव किसानों को मजबूरीवश करना पड़ रहा है, जिससे इन दवाओं की मांग बढ़ने लगी हैं। किसानों के द्वारा दिनों-दिन अत्यधिक रासायनिक खाद और रासायनिक फफूंदी कवक नाशक और जहरीली कीटनाशकों के प्रयोग से खेतों की उर्वरा शक्ति और रोग-प्रतिरोधक क्षमता क्षीण होने लगी है। कृषकों के अपने औसत कृषि बजट से महंगी निंदाई, गुड़ाई, मजदूर खर्च भी अधिक होने से अधिभार बढ़ते जा रहा है। किसानों का कहना है अब किसान आत्मनिर्भर नहीं रह गया है। धान बीज, बोवाई से लेकर कृषि उपज मंडी में अनाज बिक्री तक दूसरों पर आश्रित रहना पड़ रहा है। इन सब खर्चों के कारण वर्तमान में खेती का बजट बहुत अधिक बढ़ गया है, जिससे किसान चिंतित नजर आ रहे हैं। अब किसानों को जैविक कृषि कार्यक्षेत्र की दिशा में जाने की महती आवश्यकता हो गई है।