सरायपाली : अपंगता का दंश झेल रहे युवक को समाजसेवी की पहल से मिला दिव्यांग प्रमाण-पत्र
सरायपाली (काकाखबरीलाल). एक निर्धन व्यक्ति को प्रधानमंत्री आवास बनाना महंगा पड़ गया। दरअसल, मकान बनाते समय छत से गिरने से हितग्राही को गंभीर चोट आई और अपने दोनों पैर को खो बैठा। वर्तमान में वह अपंगता का दंश झेल रहा है। चलने-फिरने में असक्षम होने के बावजूद उन्हें दिव्यांग प्रमाण-पत्र नसीब नहीं हो रहा था। गांव में विधायक के पहुंचने और उनके समक्ष समस्या बताने के बाद विद्याभूषण सतपथी को इसकी जानकारी हुई।
जन सहयोग से 2 दिन के अंदर ही उनकी स्थिति को देखते हुए तत्काल डॉ. मानस सतपथी द्वारा दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी किया गया है। इसके बाद दिव्यांग सुरेन्द्र को अब शासन की योजना का भी लाभ मिलेगा।
ग्राम पंचायत परसकोल के आश्रित ग्राम बोइरमाल के सुरेंद्र मांझी पिता रवि लाल माझी (45) ने बताया कि गत वर्ष प्रधानमंत्री आवास बनाते समय छत से गिरने से वे दिव्यांगता के शिकार हो गया। दोनों पैरों चलने-फिरने में असक्षम होने के बावजूद उन्हें ना तो दिव्यांग प्रमाण पत्र मिला था और ना ही शासन की योजना का लाभ मिल रहा था। दिव्यांग सुरेंद्र की जानकारी समाजसेवी तोषगांव निवासी विद्याभूषण सतपथी को जैसे ही हुई, उन्होंने महासमुंद में पदस्थ उनके पुत्र डॉ. मानस सतपथी को इसकी जानकारी दी। डॉक्टर ने सरायपाली में सुरेंद्र की जांच की और पाया कि वह लगभग 60 प्रतिशत दिव्यांग है। उनके द्वारा परीक्षण के अगले दिन ही दिव्यांग प्रमाण-पत्र जारी किया गया है। अब निर्धन सुरेंद्र को शासन की महत्वपूर्ण योजना का लाभ मिलेगा। दिव्यांग पेंशन भी अब मिलने लगेगा। सदस्यीय परिवार में सुरेंद्र एकमात्र कमाऊ सदस्य थे। उनके दिव्यांग होने के बाद उनके जतन में उसकी पत्नी का दिन कट जाता है। इससे वह मजदूरी करने भी नहीं जा पाती।
प्रमाण-पत्र जारी किया
आर्थो सर्जन डॉ. मानस कुमार सतपथी ने बताया कि सुरेंद्र की रीड की हड्डी टूटी हुई है। इसके चलते उनके दोनों पैर कार्य नहीं कर रहे हैं। वह एक निर्धन परिवार से हैं, इसलिए दिव्यांग-प्रमाण पत्र नहीं बनवा पाए थे। लेकिन, कुछ ग्रामीणों द्वारा उन्हें मेरे पास लाया गया था। उनकी स्थिति को देखते हुए पूरी प्रक्रिया पूर्ण कर दिव्यांग प्रमाण-पत्र जारी किया गया है।
छत से गिरने से हो गया दिव्यांग
दिव्यांग सुरेंद्र ने बताया कि उनका प्रधानमंत्री आवास भवन बनकर तैयार हो गया था। कुछ छुट-पुट कार्य शेष था, जिसे वे पूरा कर रहे थे। इसी दौरान एकाएक बेहोश होकर छत से जमीन में गिरने से उन्हें गंभीर चोटें आई थी। काफी दिनों तक इलाज चला। गरीबी के चलते पूर्ण इलाज करवाने में असक्षम हुए तो बेड में ही उनकी जिंदगी कट रही थी और रीड की हड्डी टूटने से वे अपने दोनों पैरों को खो बैठे। उनके दोनों पैर शून्य हो गए हैं, जिससे वह ना तो खड़े हो सकते हैं और ना चल-फिर सकते हैं। इस स्थिति के बावजूद उनका दिव्यांग प्रमाण पत्र नहीं बन रहा था। जबकि, उन्होंने कई जनप्रतिनिधियों को अपना दुखड़ा सुनाया था।