नौकरी चली गई तो सड़क पर जिंदगी काली धूल’ में रोटी की मशक्कत
कोरोना का प्रकोप कम हो गया, लेकिन लॉकडाउन से प्रभावित हुआ लोगों का जीवन अभी तक सामान्य नहीं हो पाया है। ग्रामीण क्षेत्र में कोरोना के दौरान प्राइवेट कंपनियों से निकाले गए लोगों के पास अभी तक रोजगार नहीं है। रोजगार नहीं है तो जिंदगी चलाने के लिए मशक्कत बढ़ गई है। ऐसा ही रायपुर के औद्योगिक इलाके सिलतरा, उरला इलाकों में दिख रहा है। यहां काम से निकाली गई महिलाएं सड़क किनारे लोहे के छोटे छोटे टुकड़े बीनते हुए दिखती हैं। दिनभर काली धूल में आयरन ओर के कचरे से लाेहे के टुकड़े जुटाकर महिलाएं दो-चार सौ रुपए जुटा रही हैं। मांढर क्षेत्र में दिनभर इस्पात कारखानों से गाड़ियां निकलती हैं। गांव में महिलाएं गाड़ी गुजरने के बाद आयरन की गोटियों को एकत्र करने में जुट जाती हैं। गांव की महिलाएं रोज सुबह से शाम तक सड़क के किनारे आयरन ओर की गोटियों एकत्र करती हैं, बाद में इसे बेचकर अपने परिवार चलाती हैं। उनका कहना है कि लॉकडाउन के बाद रोजगार का कोई सहारा नहीं है। कारखाने से गाड़ी गुजरने पर आयरन ओर की गोटियां भी गिर जाती हैं। इसे रोड़ किनारे मिट्टी से खाेदकर आयरन गोटी अलग करते है, जिसे सप्ताह के अंत में धान कुटाई सेंटर में बेचते हैं। गोटियों से बेचकर मिले पैसे से अब घर चल रहा है।
महिलाएं सुबह 6 से शाम 6 बजे तक हंसिया और रापा लेकर रोड किनारे मिट्टी को खोदती हैं। शांति ध्रुव ने बताया कि लॉकडाउन में काम से निकाले जाने के बाद घर चलाने के लिए आयरन ओर पैलेट बीनने का काम शुरू किया है। पैलेट को 5 रुपए किलो में बेचते हैं। दिन में 60 से 70 किलो आयरन ओर पैलेट एकत्र कर लेते हैं। 5 दिनों में लगभग 12 क्विंटल गोटी इकट्ठा कर लेते हैं। धान कुटाई सेंटर वाले इसे पांच रुपए में लेते है और आगे महंगे दाम में बेचते है। इस काम रोजगार जितना पैसा नहीं मिलता, लेकिन घर खर्च निकाल लेते है। उन्होंने बताया, गांव की अधिकतर महिलाएं अब यही काम करने लगे है।
मांढर गांव से पहले लगभग 1 किलोमीटर क्षेत्र में महिलाएं सड़कों से आयरन ओर पैलेट ढूंढने का काम करती हैं। महिलाएं पहले कारखाने में काम करते जाती थी। लॉकडाउन लगने के बाद सभी लोगों को काम से निकाल दिया गया। अभी तक किसी को फिर नहीं बुलाया है। ऐसे में पैसे की तंगी है। परिवार चलाने के लिए रोज सुबह से शाम तक सड़क में धूल के बीच आयरन ओर पैलेट बीनना मजबूरी है। इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है। पहले रोजगार से 200 मिलता था। अब इस काम से तीन दिनों में 500 रुपए मिल जाता है। इसके लिए प्रतिदिन 6 घंटे की मेहनत भी करनी पड़ती है। जब तक स्थाई काम नहीं मिलता। इसे ही रोजगार समझकर काम करते रहेंगे।