अंचल में अवैध रूप से चल रहे क्वार्टज़, की माइन को प्रशासन ने किया सील
रायपुर (काकाखबरीलाल).पर्यावरण संरक्षण मंडल ने महासमुंद ज़िले के सराईपाली में नियम विरुद्ध चल रहे क्वार्टज़ की माइन पर छापा मारकर उसे सील कर दिया है. सुशीला माइनिंग प्रा. लिमिटेड कंपनी की लीज़ वाली इस माइनिंग में बिना अनुमति के क्रशर लगाकर खुदाई चल रही थी. जांच में ये बात भी सामने आई है कि कंपनी द्वारा तय अनुमति से ज़्यादा उत्खनन किया जा रहा था. तय अनुमति से कितना ज़्यादा उत्खनन कर रहा था, इसका आकलन खनिज विभाग कर रहा है. इस कंपनी के मालिक वैंकटेश्वर खेड़िया नाम के व्यक्ति बताए जा रहे हैं. ये भी बात हैरान करने वाली है कि ये माइन 3 साल से गोमर्डा अभ्यारण से सटे इलाके में चल रही थी. जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक अभ्यारण के दस किलोमीटर के दायरे में किसी तरह की माइनिंग गतिविधियों की स्पष्ट मनाही है. बोर्ड ने बिजली विभाग को चिट्ठी लिखकर इस माइन का कनेक्शन बंद करने की मांग की गई है. मामले की जांच चल रही है. शुरुआती जांच से पता चला है कि माइनिंग में तयशुदा सीमा से कई गुना ज़्यादा उत्खनन का काम चल रह है. छापेमारी की ये कार्रवाई एक ग्रामीण की शिकायत पर की गई .गोमर्डा अभ्यारण्य से सटे एक गांव के ग्रामीणों ने वनमंत्री मोहम्मद अकबर से शिकायत की थी कि गोमर्डा अभ्यारण से सटे गांव बिर्कोल में बड़े पैमाने पर क्वार्ट्ज की माइनिंग हो रही है. जिससे पूरे अभ्यारण्य क्षेत्र प्रदूषण की चपेट में रहता है. इस शिकायत पर वनमंत्री मोहम्मद अकबर ने जांच के आदेश दिए. 16 जून को मंत्री के निर्देश पर सचिव की चिट्ठी बोर्ड कोमिली और बोर्ड ने अधिकारियों को सलायपाली भेजकर छापा मरवाया. छापे में पता चला कि जो कागज़ात माइन्स के मालिक ने जमा कर रखे हैं, वो सारे फर्जीवाड़े की कहानी बयां करते हैं. माइन्स के लिए स्वीकृति 2-9-2020 को भारत सरकार के अधीन राज्य स्तर समाघात निर्धारण प्राधिकरण ने दिए. जिसमें सुशीला माइंस को खसरा नंबर 964 के 12 हैक्टेयर में क्वार्टाइज़ माइन के सालाना 60006 टन उत्खनन की के लिए अनुमति मिली. राज्य सरकार की ओर अनुमति मिलने के बाद 2017 में इस माइन से उत्खनन शुरु हुआ. माइन्स ने अपना क्षेत्र बढाने की अनुमति के लिए दोबारा आवेदन लगाया था. जिस दौरान ये खुलासा हो गया. अनुमति इस जानकारी के आधार पर दी गई कि इस अभ्यारण के दस किलोमीटर की सीमा में कोई राष्ट्रीय उद्यान, अभ्यारण्य, अति प्रदूषित क्षेत्र, पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र या घोषित जैव विविधता क्षेत्र नहीं है. जबकि सच्चाई ये है कि जिस गांव में ये माइन है उससे सटा हुआ गोमर्डा अभ्यारण्य है. गोमर्डा अभ्यारण जंगली भैंसो और कई प्रकार के हिरणों का आवास है. ये जानवर आवाज़ को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं. सूत्रों के मुताबिक इस कंपनी पर पूर्व की सरकार के ताकतवर लोगों की नज़रें इनायत थीं. बताया ये भी जा रहा है कि कुछ ताकतवर नौकरशाहों की बदौलत अब तक इनका काम बेधकड़ चल रहा था. लेकिन एक ग्रामीण की शिकायत पर संवेदनशीलता बरतने से मामले का खुलासा हो गया.