सरायपाली: बहुभाषिकता शिक्षण पर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला
सरायपाली. राज्य परियोजना कार्यालय समग्र शिक्षा रायपुर के निर्देशन व प्रबंधन में प्राथमिक स्तर पर बहुभाषा शिक्षण के लिए बस्तर एकेडमी आफ डांस आर्ट एण्ड लिटरेचर , बादल जगदलपुर में कार्यशाला का आयोजन किया गया।
छत्तीसगढ़ में प्रमुख रुप से छत्तीसगढ़ी , हल्बी तथा अन्य सभी स्थानीय प्रचलित भाषाओं को शिक्षण में बढ़ावा देने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में अनेक नवाचार किए जा रहे हैं। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा आगामी समय में छत्तीसगढ़ी भाषा एवं सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय भाषाओं को प्रारंभिक कक्षाओं के पाठ्यक्रम में शामिल करने की कार्यवाही शुरू कर दी गई है। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) के द्वारा संविधान की धारा 350 –क में वर्णित अनुच्छेद के अनुपालन में राज्य के भीतर प्रत्येक भाषायी वर्गों के विद्यार्थियों को प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं के लिए व्यवस्था करने का प्रयास किया जा रहा है ।
हमारे प्रदेश की 14 विभिन्न बोलियों में कक्षा एक और दो के लिए पाठ्यवस्तु तैयार किये जा रहे हैं। इसी क्रम में आयोजित इस कार्यशाला में स्थानीय भाषाओं में वार्तालाप पुस्तिका , शब्दकोश , फ्लैश कार्ड , छोटी कहानियों पर आधारित चित्रकथा निर्माण तथा अन्य सहायक शिक्षण सामग्री पहचान के गुर प्रशिक्षकों द्वारा सिखाया गया। स्थानीय बोलियों में पढ़ाई की व्यवस्था के लिए अवधारणात्मक समझ तथा प्रक्रिया पर परस्पर अंत:क्रिया संवाद द्वारा गहन चर्चा किया गया। फील्ड विजिट में बस्तर विकास खण्ड के विभिन्न प्राथमिक शालाओं में कक्षा पहली तथा दूसरी में संचालित हल्बी भाषा आधारित बहुभाषी पाठ्यक्रम तथा पाठ्यसहगामी शैक्षिक गतिविधियों से राज्य स्त्रोत समूह के सभी सदस्यों को परिचय कराया गया। बस्तर एजुकेशनल टीम की सभी प्रबंधकीय व्यवस्थाएँ प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय थीं।
जिला शिक्षा अधिकारी महासमुन्द मीता मुखर्जी एवम कमल नारायण चंद्राकर के आदेशानुसार तथा बीईओ सरायपाली प्रकाशचंद्र माझी एवं बीआरसी सतीश स्वरूप पटेल के निर्देशानुसार इस कार्यशाला में छत्तीसगढ़ी व ओड़िया-सम्बलपुरी के लिए महासमुंद जिले से नामित राज्य स्त्रोत व्यक्ति योगेश कुमार साहू, सहायक शिक्षक , प्राथमिक शाला कसडोल , अंजु पटेल ,प्रधान पाठक, ,विकासखण्ड सरायपाली ने प्रतिनिधित्व किया। स्थानीय भाषाओं को शिक्षा माध्यम में शामिल करने से धूमिल या विलुप्त हो रही भाषाओं को नवीन पहचान एवं समृद्धि मिलेगी। आने वाले समय में राज्य के विद्यार्थियों हेतु स्थानीय भाषा सामग्री का विपुल भण्डार हो।