अनूठी परम्परा यहां होती है होलिका के प्रेमी इलोजी की पूजा
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में होलिका के प्रेमी इलोजी की पूजा होती है। इलोजी को राजस्थान में लोक देवता के तौर पर पूजा जाता है। इनकी पूजा करने की परंपरा रायपुर में 200 साल पुरानी है। शहर के सदर बाजार में इन्हें नाथूराम नाम से भी जाना है।
गुरुवार को सदर बाजार में नाथूराम जी के होली मिलन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी शामिल हुए। सराफा एसोसिएशन से जुड़े कारोबारी हरख मालू ने बताया कि 200 साल पहले रायपुर के सराफा व्यापारियों ने मिलकर नाथूराम (इलोजी) जी की पूजा परंपरा की शुरुआत की थी, जो अब भी जारी है।ऐसा माना जाता है कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका की शादी पहले इलोजी से ही होने वाली थी। दोनों के बीच बेहद प्यार था। मगर हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रह्लाद के विष्णु भक्ति से तंग आकर उसकी हत्या करने की सोची। होलिका को अग्नि का वरदान प्राप्त था यानी कि अगर वह आग में भी कूदे तो वह जलती नहीं। मगर प्रह्लाद की भक्ति की शक्ति की वजह से जब वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठी तो जलकर उसकी मृत्यु हो गई। इसी घटना की वजह से होलिका दहन भी किया जाता है।
दूसरी तरफ जब होलिका के मौत की खबर इलोजी ने सुनी तो वो बेहद दुखी हुए। वह दूल्हे के वेश में बारात लेकर होलिका से विवाह करने निकल चुके थे, तभी उन्हें होलिका के मृत्यु की खबर मिली। इसके बाद गम में डूबे इलोजी होलिका के पास पहुंचते हैं और शव को देखकर जमकर विलाप करते हैं। माना जाता है कि इलोजी ने होलिका की राख को अपने शरीर पर मलकर अपना प्यार जताया था।. साथ ही ताउम्र शादी नहीं की और होलिका की याद में जीवन बिताया। होली जलने के दूसरे दिन धूल भरी होली के रूप में लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं।
यहां होती है होलिका के प्रेमी इलोजी की पूजा:रायपुर में होली से जुड़ी अनूठी परंपरा; प्यार अधूरा रहा,दूल्हे के रूप में पूजे जाते हैं
रायपुर20 मिनट पहले
रायपुर के इलोजी (नाथूराम जी) – Dainik Bhaskar
रायपुर के इलोजी (नाथूराम जी)
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में होलिका के प्रेमी इलोजी की पूजा होती है। इलोजी को राजस्थान में लोक देवता के तौर पर पूजा जाता है। इनकी पूजा करने की परंपरा रायपुर में 200 साल पुरानी है। शहर के सदर बाजार में इन्हें नाथूराम नाम से भी जाना है।
गुरुवार को सदर बाजार में नाथूराम जी के होली मिलन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी शामिल हुए। सराफा एसोसिएशन से जुड़े कारोबारी हरख मालू ने बताया कि 200 साल पहले रायपुर के सराफा व्यापारियों ने मिलकर नाथूराम (इलोजी) जी की पूजा परंपरा की शुरुआत की थी, जो अब भी जारी है।
सीएम भी कार्यक्रम में शामिल हुए।
सीएम भी कार्यक्रम में शामिल हुए।
पौराणिक मान्यता
ऐसा माना जाता है कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका की शादी पहले इलोजी से ही होने वाली थी। दोनों के बीच बेहद प्यार था। मगर हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रह्लाद के विष्णु भक्ति से तंग आकर उसकी हत्या करने की सोची। होलिका को अग्नि का वरदान प्राप्त था यानी कि अगर वह आग में भी कूदे तो वह जलती नहीं। मगर प्रह्लाद की भक्ति की शक्ति की वजह से जब वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठी तो जलकर उसकी मृत्यु हो गई। इसी घटना की वजह से होलिका दहन भी किया जाता है।
दूसरी तरफ जब होलिका के मौत की खबर इलोजी ने सुनी तो वो बेहद दुखी हुए। वह दूल्हे के वेश में बारात लेकर होलिका से विवाह करने निकल चुके थे, तभी उन्हें होलिका के मृत्यु की खबर मिली। इसके बाद गम में डूबे इलोजी होलिका के पास पहुंचते हैं और शव को देखकर जमकर विलाप करते हैं। माना जाता है कि इलोजी ने होलिका की राख को अपने शरीर पर मलकर अपना प्यार जताया था।. साथ ही ताउम्र शादी नहीं की और होलिका की याद में जीवन बिताया। होली जलने के दूसरे दिन धूल भरी होली के रूप में लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं।
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प्रेम का देवता भी कहा जाता है
यही वजह है कि नाथूराम या इलोजी की दूल्हे के स्वरूप पर प्रतिमा स्थापित करके पूजा की जाती है । इलोजी को प्रेम का देवता भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि निसंतान महिलाएं संतान की प्राप्ति के लिए इनकी पूजा करती हैं। राजस्थान की लोक कथाओं में इलोजी मजाकिया देवता के तौर पर भी देखे जाते हैं । होलियाना माहौल में आपस में महिलाएं और पुरुष एक दूसरे को छेड़ने के लिए इलोजी से जुड़ी कई कहावतें भी कहते हैं।
राजस्थान में होती है विशेष पूजा
राजस्थान के कई शहरों और गांवों में आज भी लोकदेवता इलोजी महाराज की पूजा की जाती है। होलिका की मौत के बाद इलोजी की प्रेम कहानी अधूरी रही। हालांकि इलोजी ने फिर कभी शादी नहीं की और ये प्रेम कहानी अमर हो गई। इतना ही नहीं राजस्थान के कई क्षेत्रों में आज भी इलोजी की पूजा होती है। वहां की पाली में इलोजी का मंदिर भी है। होली से पहले कई इलाकों में इलोजी की प्रतिमा स्थापित करके पूजा पाठ की जाती है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सदर बाजार में यही परंपरा कई सालों से चल रही है।