राजिम मेले में देखिए ‘आसन वाले बाबा’ का कमाल
कहते हैं यदि व्यक्ति में संयम हो तो वह जो चाहता है कर सकता है। ऐसा ही एक शख्स है मुनींद्र भगत। जो न तो कोई बाबा है न साधु लेकिन उसे आसन में देखते हुए लोग उसे भी बाबा कहने लगे हैं। हमने जब उससे बात की तो पला चला कि वह झारखंड के गोड्डा जिला का रहने वाला है। साल 2013 से उसने घर छोड़ दिया। 58 वर्षीय मुनींद्र ने बताया, मुझे नदी के किनारे और घाट बहुत पसंद है। इसलिए मैं ऐसे क्षेत्रों में घूमता रहता हूं। चूंकि इन इलाकों में दो वक्त का भोजन भी मिल जाता है इसलिए कमाने की चिंता भी नहीं।मेरे पिता आसन किया करते थे। इसलिए मैं भी करने लगा। हालांकि यह सब प्रैक्टिस का खेल है। मैंने वृंदावन में 2000 दंड बैठक लगाया है। मैंने सोचा परिक्रमा करने से बेहतर है दंड बैठक मार लिया जाए। मुझे पता है इस बात पर कोई यकीन नहीं करेगा लेकिन जो है सो है। सर्दी के सीजन में मैंने यह किया था।मेरी मां का निधन हुआ तो मैं नासिक आया था। वहां से इलाहाबाद गया। कुछ साधु किस्म के लोग भोजन के लिए लाइन लगाए थे। मैं भी कतार में खड़ा हो गया। लेकिन मुझे कहा गया कि आप पैंट-शर्ट में रहेंगे तो भोजन नहीं मिलेगा। उनके कहने पर मैंने धोती पहन ली। मैंने राजनीति में एमए किया है। पत्नी नौकरी कर रही है। एक बेटी और एक बेटा है जो कॉलेज में हैं। मैं मोबाइल भी नहीं रखता इसलिए उनसे कोई संपर्क नहीं है।मुझे सबसे ज्यादा शीर्षासन पसंद है। इसके अलावा मयूराआसन, धनूषासन, भूजंगासन भी करता हूं। आसन करते रहने से कोई भी बीमारी मुझे छू नहीं पाई। हालांकि लो ब्लड प्रेशर की शिकायत है।