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विद्यार्थी अपने घरों पर ही रह कर ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से मूर्तिकला की बारीकियां सीख रहें

रायपुर (काकाखबरीलाल).कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन के बहुत से रचनात्मक और कलात्मक पहलू भी सामने आ रहे हैं। लोग अपनी कल्पनाशीलता को विभिन्न आयामों में अभिव्यक्त कर रहे हैं। इसी तरह की अभिव्यक्ति हमें छत्तीसगढ़ के एकमात्र शासकीय दिव्यांग महाविद्यालय के मूक बधिर विद्यार्थियों की कलाकृतियों में भी दिखाई देती हैं, जो उन्होंने लॉकडाउन के दौरान तैयार की हैं। ये विद्यार्थी अपने घरों पर ही रह कर ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से मूर्तिकला की बारीकियां सीख रहें हैं। इन्हें महाविद्यालय के शिक्षक श्री चंदपाल पंजारे मोबाइल से वीडियो, फोन और वॉट्सअप कॉलिंग के माध्यम से विभिन्न कलाओं के गुर सिखा  रहे हैं। 

    कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव और रोकथाम के लिए दिव्यांग महाविद्यालय में नियमित शिक्षण बंद है। ऐसे में समाज कल्याण विभाग द्वारा दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए ऑनलाईन पढ़ाई और रचनात्मक गतिविधियां संचालित कर समय का सदुपयोग कराया जा रहा जा रहा है। इससे विद्याथियों की न सिर्फ पढ़ाई सुचारू रूप से चल रही हैं बल्कि उनका कलात्मक पक्ष उभरकर सामने आ रहा है। ऑनलाइन दृष्टिबाधित, अस्थिबाधित बच्चों को संगीत तथा मूक-बधिर विद्यार्थियों को चित्रकला और मूर्तिकला की विभिन्न विद्याओं का प्रशिक्षण दिया जा रहा हैं। ऑनलॉइन कक्षाओं में पहले शिक्षक द्वारा डेमो दिखाया जाता है, फिर विद्यार्थियों को टॉस्क दिया जाता है। कॉलेज के बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स के विद्यार्थी श्री जोगेश कोण्डागांव जिले और श्री लोंगेश्वर बिलासपुर जिले में रहकर मूर्तियां गढ़ना सीख रहे हैं। इनके कई सहपाठी छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से जुड़े हैं। मूर्ति शिल्प के लिए मिट्टी की जरूरत होती है, जो आसानी से गांव के खेतों में ही मिल जाती है और कोई खर्च भी नहीं होता।
    शिक्षक श्री पंजारे ने बताया कि मूक बधिर बच्चों को बी.एफ.ए. कोर्स के अंतर्गत सेमेस्टर अनुसार धीरे-धीरे मूर्तिकला के विभिन्न पक्षों को सिखाया जाता है। वर्तमान में 20 बच्चे इसका कोर्स कर रहे हैं। कक्षा में मिले कलात्मक, रचनात्मक और व्यवसायिक ज्ञान भावी जीवन में दिव्यांग बच्चों को आत्मनिर्भर बनने में मदद करेगा। उन्होंने बताया कि सामान्य बच्चों की अपेक्षा मूक बधिर बच्चों को सिखाना ज्यादा आसान है,क्योंकि वे देखकर जल्दी सीख जाते हैं। उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाने से पहले बच्चों को मिट्टी की तैयार करना, उसकी गुणवत्ता और माप सिखाते हैं। टेराकोटा और सीमेंट की कला कृति के साथ लैण्डस्केप (भू-दृश्य चित्रण), 2डी डिजाइन, छापाकला के साथ कागज लुग्दी और बांस क्राफ्ट भी विद्यार्थियों को सिखाया जाता है। 2डी डिजाइन का उपयोग कपड़ा उद्योग और छापाकला का प्रिंट मेकिंग में उपयोग होता है। नियमित कक्षाओं में विद्यार्थियों को पोट्रेट ड्रॉइंग, शरीर रचना का ज्ञान, दृश्यों का समायोजन, वस्तुचित्रण सिखाने के बाद अंत में क्रियेटिव ड्रॉइंग बताई जाती है। इसके विद्यार्थी खुद की सोच या भावना को पेंटिंग या मूर्ति के माध्यम से दिखाते हैं और अपनी कल्पनाशीलता का प्रयोग करते हैं। अंतिम सेमेस्टर तक विद्यार्थी किसी भी आकृति को उकेरना सीख जाते हैं। 

छत्तरसिंग पटेल

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