तीन बेटियों के बाद नसबंदी कराकर समाज के सामने कायम कि मिसाल कहा बेटों से कम नहीं बेटियां

रायपुर( काकाखबरीलाल). समाज में जहां आज भी बेटियों को बोझ समझा जाता है और बेटे की चाहत में लोग लिंग परीक्षण तक करवाते हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचल मैनपुर के एक गाँव में रहने वाले सर्वेश्वर सिन्हा (बदला हुआ नाम) ने तीन बेटियों के बाद पुरुष नसबंदी करवाकर समाज के सामने एक मिसाल पेश की है। सर्वेश्वर की आयु 30 वर्ष है। उनकी बड़ी बेटी 6 वर्ष की है और सबसे छोटी बेटी 8 माह की है।
सर्वेश्वर सिन्हा कहते हैं : “मेरी तीनों बेटियां ही मेरा सब कुछ है, बेटियों को पढ़ा-लिखाकर आगे बढ़ाना है। वह बेटों से कम नहीं है। साथ ही बेटियों के बेहतर भविष्य के लिए और उनको एक अच्छा जीवन देने की कोशिश में ही मैंने पुरूष नसबंदी का विकल्प चुना है। साथ ही समाज में फैली भ्रांतियों को मिटाने के लिए भी मैंने अपनी नसबंदी करवाई है।’’ सर्वेश्वर की पत्नी मीरा देवी (बदला हुआ नाम) का कहना है, “जब हमने परिवार को सीमित रखने का फैसला किया तो हमारे पास दो विकल्प थे। पहला महिला नसबंदी और दूसरा पुरुष नसबंदी। परिवार नियोजन के साधन के चयन में हमारी सास की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
हमारी सास मितानिन का काम भी करती है। इसलिए उन्होंने हमें परामर्श दिया और बताया कि पुरुष नसबंदी की प्रक्रिया ज्यादा सरल है जबकि महिला नसबंदी की प्रक्रिया जटिल है। इसलिए मेरे पति ने मेरी नसबंदी न कराकर आसान प्रक्रिया का चुनाव करते हुए अपनी नसबंदी कराई है। “सर्वेश्वर कहते है ”हमारी मासिक आमदनी 8000-10,000 रुपए है। अगर हम पुत्र की लालसा में परिवार बढ़ाते रहे तो एक दिन ऐसी स्थिति आएगी कि हम लोगों को एक सामान्य जीवन व्यतीत करना भी मुश्किल हो जाएगा। इसलिए हम दोनों ने मिलकर निर्णय लिया कि अब परिवार के नियोजन के लिए स्थाई साधन को ही चुनना समझदारी है और इसलिए मैंने यह निर्णय लिया और पुरूष नसबंदी कराई।’’ “घर की सारी जिम्मेदारी पत्नी की है तो कम से कम इस काम में तो मैं उसका बोझ कुछ कम कर ही सकता हूँ,’’ सर्वेश्वर ने कहा। नसबंदी के उपरांत डाक्टर ने कुछ दिन आराम करने की सलाह दी थी और बाइक न चलाने को कहा था। उसके बाद से मैंने सामान्य जीवन जीना शुरू किया। मुझे कोई परेशानी नहीं हुई ।’’
मीरा देवी का कहना है कि पहले तो बेटे के बिना परिवार की कल्पना ही नहीं की जाती लेकिन अब समय बदल गया है। अब तो बेटियां भी बेटों से कम नही है। “हमारे क्षेत्र में और प्रदेश के साथ-साथ देश में भी हजारों ऐसे उदाहरण हैं, जहां बेटों से आगे बेटियाँ हैं। जब भी एग्जाम का रिजल्ट आता है हमेशा बेटियों ने ही बाजी मारी है। आज बेटियां कहां मौजूद नहीं है खेत से लेकर सीमा तक बेटियों ने अपना परचम लहराया है।