जिले का अद्भूत है 12 कोण वाला धारा शिवलिंग
दंतेवाड़ा में शंखनी नदी किनारे कोसम वृक्ष के नीचे छत्तीसगढ़ का एकमात्र दुर्लभ धारालिंग है। यह शिवलिंग सामान्य प्रचलित शिवलिंगों से अलग है। नदी किनारे उपेक्षित पड़े इस शिवलिंग को धारालिंग कहा जाता है।इसमें 12 कोण बने हुए हैं। किसी भी ओर से देखने पर इसके सात ही कोण दिखते हैं । इस तरह का शिवलिंग छत्तीसगढ़ के सिरपुर में ही पाया गया है। पुरातत्व विभाग द्वारा नवी शताब्दी से लेकर 16 वीं शताब्दी तक की विभिन्न मूर्तियों को सहेजा और संरक्षित किया गया है। परंतु शंखनी नदी किनारे उपेक्षित पड़े लगभग डेढ़ हजार साल पुराने धारालिंग को संरक्षित करने का प्रयास नहीं किया गया है। जानकारी के अभाव में लोग यहां तक नहीं पहुंच पाते। आस्थावश जियापारा के ग्रामीण ही धारालिंग की पूजा अर्चना करते हैं।बस्तर में हजारों वर्षों तक छिंदक नागवंशी राजाओं का वर्चस्व रहा है इसलिए बस्तर में उमा महेश्वर की प्रतिमाएं सबसे ज्यादा मिलती है। उस काल के अधिकांश मूर्तियों और देवालय को पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है । शंखनी नदी किनारे नलयुग का लगभग डेढ़ हजार साल पुराना धारालिंग उपेक्षित पड़ा है। बस्तर के एकमात्र तथा 12 कोणीय दुर्लभ धारालिंग को अब तक पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित नहीं किया गया है।बस्तर में लगभग 14 वीं शताब्दी छिंदक नागवंशी राजाओं का राज्य था। वे शैवपंथी थे तथा शिव परिवार की पूजा अर्चना करते थे इसलिए कांकेर से लेकर गढ़धनोरा, बस्तर, भोंगापाल, नारायणपाल, बारसूर, समलुर, टेमरा, चित्रकोट, तीरथगढ़, दंतेवाड़ा, भैरमगढ़ आदि स्थानों में शिव परिवार की हजारों मूर्तियां नजर आती हैं। इन स्थानों से उमा महेश्वर की लगभग 90 प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं।