दुनिया में आने के पहले ही सिस्टम की भेंट चढ़े जुड़वा बच्चे, मां बिलखती रही, पिता भर्ती कराने भागता रहा
स्वास्थ्य विभाग की लचर व्यवस्था और बोझिल सिस्टम की वजह से दो बच्चे दुनिया में आने से पहले ही काल के गाल में समा गए। गंभीर हालत में गर्भवती मां डिलीवरी के इंतजार में बिलखती रही और पिता कागजी प्रक्रिया पूरी करने भागता रह गया। वाकया उरला में रहने वाले परिवार के साथ जिला अस्पताल में संचालित आंबेडकर अस्पताल के स्त्री व प्रसूति रोग विभाग में हुआ।
स्वास्थ्य विभाग को प्रदेशभर में अपडेट करने के दावे किए जा रहे हैं, मगर राजधानी में ही सिस्टम का हाल झकझोरने वाला है। इस व्यवस्था का दंश हर दिन आम आदमी को झेलना पड़ रहा है। आज दो बच्चे दुनिया में आने से पहले ही इस सिस्टम की बलि चढ़ गए। जानकारी के अनुसार उरला में रहने वाले सोमरथ झरिया की पत्नी ललिता गर्भवती थी। उरला के स्वास्थ्य केंद्र में उसका उपचार चल रहा था। सुबह हालत बिगड़ने पर उसका घर में प्रसव हुआ। पति आनन-फानन में उसे लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गया, जहां से डाक्टरों ने पेट में और बच्चा होने पर उसे जिला अस्पताल ले जाने सलाह दी। महिला की हालत गंभीर थी मगर उसे एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिली। मजबूरन पति उसे आटो में लेकर जिला अस्पताल पहुंचा। वहां संचालित आंबेडकर अस्पताल के स्त्री व प्रसूति विभाग में उसे भर्ती करने के बजाए कोविड टेस्ट और ओपीडी पर्ची बनकर आने कहा गया। कम्प्यूटर बंद होने पर मैनुअली पर्ची दी गई मगर उसे मान्य नहीं किया गया। इस दौरान नर्सरी में रखे गए बच्चे की मौत हो गई। इसके बाद भी काफी देर तक पति भागता रहा और अन्य की हस्तक्षेप के बाद ललिता की डिलीवरी कराई गई। ऑपरेशन में दो बच्चे तो हुए मगर एक की कुछ देर बाद मौत हो गई और तीसरी बच्ची को पीआईसीयू में रखा गया है।
एक बेड में दो मरीज, निराश लौटी महिला
इसी तरह गायनी विभाग में प्रसूति के लिए पहुंची महिला अव्यवस्था के परेशान होकर वापस लौट गई। वार्ड में अधिक मरीज होने की वजह से एक बेड में दो मरीज रखे गए हैं। महिला की हालत खराब थी वह काफी देर तक बिस्तर मिलने का इंतजार करती रही। जब परिजनों के सब्र का बांध टूट गया तो वे निराश होकर निजी अस्पताल जाने लगे मगर कागजी प्रक्रिया पूरी नहीं होने पर ने कागजात छोड़कर चले गए।
अस्पताल प्रबंधन का अपना राग
स्त्री व प्रसूति रोग विभाग की ओर आंबेडकर अस्पताल प्रबंधन ने अलग राग अलापा है। प्रबंधन के मुताबिक महिला के पेट में तीन बच्चे थे। पहला अस्पताल आने से पहले ही डिलीवर हो चुका था। उसे अस्पताल पहुंचते ही नर्सरी में शिफ्ट किया गया। महिला के अस्पताल आते ही अन्य दो बच्चों की डिलीवरी कराई गई। वहीं निराश होकर वापस लौटने वाले परिवार के बारे में सफाई दी गई है कि गायनी वार्ड में 120 बिस्तर हैं, जो सौ फीसदी भरे हुए हैं। आज 200 मरीज गायनी की ओपीडी में रजिस्टर्ड थे। इसके बाद भी परिवार समस्त पेपर छोड़कर अस्पताल से चला गया।
हस्तक्षेप से अलर्ट मगर हो गई देर
इस मामले में कुछ मीडियाकर्मियों से सोनरथ ने मदद मांगी। इसके बाद समाजसेवी चिकित्सक डॉ. राकेश गुप्ता तथा अन्य लोगों ने सीएमएचओ, जिला अस्पताल के सिविल सर्जन, आंबेडकर अस्पताल के चिकित्सकों और संबंधित विभागाध्यक्ष को इसकी जानकारी दी। अधिकारी सक्रिय हुए तब तक तीन से चार घंटे की देर हो चुकी थी और बच्चे सिस्टम की बलि चढ़ गए।